दिनांक: 24/11/2014
सेवा में,
श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय,
152, साउथ ब्लाक,
रायसीना हिल,
नई दिल्ली – 110011
विषय: विवाह (संशोधन) विधेयक के विरुद्ध आपत्तियां
श्रीमान जी,
दामन वेलफेयर सोसाइटी, 40 से ज़्यादा गैर-सरकारी संगठनो द्वारा चलाए जा रहे “सेव इंडियन फैमिली मूवमेन्ट” का हिस्सा है। यह आंदोलन, 2005 से निरंतर, एक संतुलित समाज और परिवारों में सद्भाव बनाए रखने की दिशा में कार्यरत है। पिछले 10 सालों में करोड़ों परिवारों की मदद की है और कई परिवारों को टूटने से बचाया है।
समाचार रिपोर्टों एवं हमारे द्वारा कानून मंत्रालय के विधायी विभाग में फोन पर हुई बातचीत से यह संज्ञान में आया कि भारत सरकार इसी शीतकालीन सत्र में एक नया कानून, विवाह (संशोधन) विधेयक पेश करने जा रही है और इस विधेयक के मसौदे के माध्यम से हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 एवं विशेष विवाह अधिनियम में संशोधन करना चाहती है।
इस पत्र के माध्यम से हम विवाह (संशोधन) विधेयक के लिये अपनाई गयी प्रक्रिया के विरुद्ध कड़ी आपत्ति दर्ज कराना चहते हैं।
हम आपके संज्ञान में यह लाना चाहते हैं कि:
1) यह वही कानूनी मसौदा है जो पिछली सरकार के कार्यकाल में भी सूर्य के प्रकाश से वंचित रहा था क्योकि तब भाजपा को बिलकुल सही एहसास हो गया था कि यह कानून हिंदू परिवारों एवं हिंदू पुरुषों के लिये कितना विनाशकारी है।
2) यह वही कानूनी मसौदा है जिसे समाज के विभिन्न वर्गों में नकार दिया गया था और जिसकी वजह से, गलत कारणों से ध्यान आकर्षित होने के कारण भारत की क्षमताओं के प्रति व्यापक अंतर्राष्ट्रीय संदेह का माहौल बना था।
3) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, इसी तरह के कानूनो में संपत्ति विभाजन विशुद्ध रूप से संपत्ति में व्यक्ति के वित्तीय योगदान, विवाह की अवधि और दोनों पक्षों के आचरण के आधार पर ही आधारित होता है। यूपीए सरकार ने कुछ पुरुष-विरोधी संगठनों के दबाव में आकर, जल्दबाजी में एक गलत विधेयक का प्रस्ताव रखा, जिसके उपरान्त भाजपा ही हिंदू पुरुषों के बचाव के लिए आयी थी।
4) भाजपा को इस विधेयक से अर्थव्यवस्था और परिवार प्रणाली के प्रति खतरों का एहसास हुआ:
1) हिन्दू पुरुष संपत्ति खरीदना बंद कर देंगे और इससे अर्थव्यवस्था को आघात होगा।
2) हिन्दू पुरुष शादी करना बंद कर देंगे जिससे हिन्दू जनसंख्या में गिरावट आयेगी।
3) हिन्दू पुरुष मजबूरन या तो अपनी बहनों से शादी करेंगे या धर्म परिवर्तन करेंगे।
4) पतियों की आत्महत्या की दर जो कि भारत में सर्वाधिक है, और बढ़ेगी।
5) पूर्व एवं वर्तमान विधेयक, संवैधानिक रूप से गलत हैं क्योकि उनका मसौदा माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों के बिलकुल अलग है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने शादी के असाध्य रुप से टूटने की स्थिति में विवाह विच्छेदन हेतु कानून बनाने के लिये दिशा निर्देश दिये थे ना कि संपत्ति विभाजन के लिये।
6) पूर्व एवं वर्तमान विधेयक, संवैधानिक रूप से गलत हैं क्योकि यह केवल महिला कल्याण मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला आयोग के सुझावों के अनुसार है और पुरुषों की पूर्ण रूप से उपेक्षा करता है, जबकि पुरुष भी विवाह कानूनों में किसी भी परिवर्तन से समान रूप से प्रभावित होते है।
7) पूर्व एवं वर्तमान विधेयक, संवैधानिक रूप से गलत हैं क्योकि यह लिंग-भेद रहित हिन्दू विवाह अधिनियम को पुरुष विरोधी भी बनाता है।
यह चौंकाने वाली बात है कि ऊपर वर्णित वास्तविकताओं के बावजूद, एक प्रभावशाली नेतृत्व में एक दूरदर्शी सरकार ने भी इस विधेयक के लिये पूर्व सरकार द्वारा अपनाया गया मार्ग ही चुन लिया।
इस पत्र के माध्यम से, विधायी विभाग के वर्त्मान मसौदा तैयार करने में, किये हुए स्पष्ट उल्लंघन भी हम आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं। 10 जनवरी 2014 को निर्धारित Pre-Legislative Consultation Policy (PLCP) के अनुसार यह निर्णीत हुआ था कि:
“The Department/Ministry concerned should publish/place in public domain the draft legislation or at least the information that may inter alia include brief justification for such legislation, essential elements of the proposed legislation, its broad financial implications, and an estimated assessment of the impact of such legislation on environment, fundamental rights, lives and livelihoods of the concerned/affected people, etc. Such details may be kept in the public domain for a minimum period of thirty days for being proactively shared with the public in such manner as may be specified by the Department/Ministry concerned.”
हम आपका ध्यान एक अधिसूचना, D.O. No. 11(35)/2013-L.I., तारीखी 5 फ़रवरी 2014 की ओर आकर्षित करना चाहते है, जो कि यह सुनिश्चित करता है कि मंत्रालय, विधेयक के मसौदे को पब्लिक डोमेन में कम से कम 30 दिनों के लिये प्रकाशित करें और प्रभावित लोगों को सूचित करें। दुर्भाग्यवश, वर्तमान मसौदा स्पष्ट रूप से कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की समिति (CoS) द्वारा निर्धारित इस बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान/प्रक्रिया का उल्लंघन करता है।
हम यहाँ यह भी निवेदन करना चाहते हैं कि कोई प्रक्रिया अपनाने के बाद यदि विधेयक निरस्त होता है तो वही प्रक्रिया किसी भी समान मसौदे वाले कानून के लिये लागू नहीं कर सकते और इसीलिए एक मसौदा जिससे बड़े पैमाने पर सार्वजनिक चिंताओं/आशंकाओं का जन्म होता हो, उसे लोकतंत्र में निर्धारित संवैधानिक प्रक्रियाओं को तिलांजली देकर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
इस पत्र के माध्यम से हम आपसे निवेदन करते हैं कि:
1) विवाह (संशोधन) विधेयक की प्रक्रिया को तत्काल रोकें, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
2) विधेयक के मसौदे पर जनता की राय और प्रतिक्रिया के लिये एक ड्राफ्ट मसौदा प्रकाशित करें।
3) मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में हर पक्ष की हिस्सेदारी होनी चाहिये, अर्थात, अगर पुरुषों की ओर से कोई राष्ट्रीय पुरुष आयोग नहीं है तो महिलाओं की ओर से भी महिला कल्याण मंत्रालय या राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भाग लेने की अनुमति नहीं होनी चाहिये।
4) पुरुषों के लिये काम करने वाले संगठनो को साथ लेकर ’राष्ट्रीय पुरुष आयोग’ के गठन की प्रक्रिया आरम्भ करें, ताकि कानूनों और कानून बनाने की प्रक्रिया के संदर्भ में, समाज में न्यायसंगत संतुलन वापस आ सके।
5) एक संसदीय समिति का गठन कर मसौदे पर पुनर्विचार करें और देखें कि क्या ऐसे किसी कानून की आवश्यकता है भी, क्या ये माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों के अनुसार है या केवल कुछ इच्छुक पुरुष-विरोधी पार्टियों के दबाव में ही बनाया जा रहा है।
आपके द्वारा मदद व समर्थन, तथा हमारी प्रार्थना अनुसार तत्काल कार्यवाही की अपेक्षा में…
आपका शुभाकांक्षी
अनुपम दुबे
(अध्यक्ष)
anupamdubey@hotmail.com
+91 98891 88810