“अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे, मर के भी चैन ना पाया, तो किधर जाएंगे???”
हमारे देश में करीब 65,000 विवाहित पुरुष हर वर्ष आत्महत्या कर लेते हैं, दिनांक 30/03/2016 को भी एक लड़की से बात हुई, उसने बताया कि उसके भाई ने ससुराल वालों से परेशान होकर फांसी लगाकर, दिनांक 26/03/2016 को आत्महत्या कर ली है। उसका भाई, शादी के बाद से ही अपनी पत्नि और ससुराल वालों के कारण बहुत ज्यादा परेशान रहता था।
उसके आत्महत्या करने कि ख़बर दिनांक 27/03/2016 को कोटा, राजस्थान में अखबारों में भी प्रकाशित हुई थी।
मृतक विपिन का सुसाइड नोट दिनांक 27/03/2016 को, कोटा के अखबार “दैनिक नवज्योति” में, के पृष्ठ 14 पर प्रकाशित हो चुका है, लिहाज़ा, अब यह कोई गोपनीय दस्तावेज़ नहीं है। हम यह सुसाइड नोट यहाँ जिसलिए साझा कर रहे हैं, इसका एक बड़ा कारण हैं, हमें रोज ही पीड़ित लड़कों सम्पर्क करते हैं, जिनमे लड़के अक्सर भावावेश में कहते हैं कि:
- मै बहुत परेशान हूँ, जी करता है कि आत्महत्या कर लूँ
- कानूनों में सुधार होना चाहिए, चाहे सरकार का ध्यान खींचने को मुझे आत्महत्या ही क्यों न करनी पड़े
- मैं आत्महत्या कर लूँगा, मुझसे मेरे माँता-पिता व परिवार की परेशानी नहीं देखी जाती
- अगर मैं आत्महत्या कर लूँ तो आप लोग मुझे न्याय दिलाइएगा
- मैं सरकार से इच्छा मृत्यु की माग कर रहा हूँ
- ………
- ……….. इत्यादि इत्यादि
सुसाइड नोट में लिखा है:
“मैं काफी समय से मानसिक दबाव में चल रहा था। मेरी हैसियत नहीं थी कि मै प्रकाश नारायण, गरीमा शर्मा, विमल शर्मा, और गौरव शर्मा को निवासी 2H25 महावीर नगर विस्तार योजना कोटा (राज०) को 15 लाख रूपये दे पाता। इन लोगों ने झूठ बोलकर शादी की हमें फंसाया और इन चारो ने मिलकर हमारे घर में साजिशें की। जब से शादी हुई तब से ये लोग मुझे और मेरे परिवार को केस करने की धमकियाँ दे रहे थे। क्या मेरा अपराध ये था कि मेरा बाप नही था या फिर मेरे और मेरे परिवार ने इन लोगों की छानबीन नहीं की।
मै एक मेडिकल की दूकान पर नौकरी करता था। इन लोगों से आतंकित होकर मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वर्तमान में इन लोगों ने खाने कमाने लायक भी नहीं छोड़ा। हमारे घर में इन लोगों की गुंडागर्दी और कोर्ट में भी इन लोगों की गुंडागर्दी।
इस गुंडागर्दी के दम पर केस भी अपने पक्ष में करवा लीये। और झूठे केसों में मुझे और मेरे परिवार को फंसा लिया। मेरे खुद की भी जान खतरे में थी और मेरा परिवार भी अब सुरक्षित नहीं है। उनकी ह्त्या भी हो सकती है।
आज दिनांक 24/3/016 को शाम को 4:30 लड़की का भाई गौरव शर्मा मेरे घर पर आया उसने मेरे भाई के साथ मारपीट भी की। और मेरी माँ को गाली-गलोच दी। इस घटना से मेरा परिवार काफी सदमे में है। और भयभीत भी है। ये लोग मुझसे पैसों कि माँग को लेकर मानसिक दबाव बना रहे थे। मेरी और मेरे परिवार की मुखबिरी हो रही थी। पता नहीं इन लोगों को क्या फायदा होने वाला था।
sd/-
विपिन शर्मा“
कई लोगों को सुसाइड नोट में लिखे हालात बिलकुल अपने जैसे लगेंगे… लेकिन, गनीमत है कि इसे पढ़ने के लिए जीवित तो हैं…
प्रश्न यह नहीँ है कि मृतक विपिन ने सही किया, या गलत किया…
आपकी क्या राय है, इसका निर्णय आप करें। लेकिन हम यहाँ उन लोगों से पूछना चाहते हैं जो लोग आत्महत्या को हंसी खेल समझते हैं और मना करने के बावजूद बार बार कहते हैं कि:
- मै बहुत परेशान हूँ, जी करता है कि आत्महत्या कर लूँ
- कानूनों में सुधार होना चाहिए, चाहे सरकार का ध्यान खींचने को मुझे आत्महत्या ही क्यों न करनी पड़े
- मैं आत्महत्या कर लूँगा, मुझसे मेरे माँता-पिता व परिवार की परेशानी नहीं देखी जाती
- अगर मैं आत्महत्या कर लूँ तो आप लोग मुझे न्याय दिलाइएगा
- मैं सरकार से इच्छा मृत्यु की माग कर रहा हूँ
- ……
- ……. इत्यादि इत्यादि
हमारे देश में, इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए और यही सब सोचते हुए, हर वर्ष करीब 65,000 विवाहित पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं। क्या किसी को भी जानकारी है, कि जिन लोगों ने आत्महत्या की है, उनकी समस्या का समाधान हो गया? कोई भी उदाहरण हो तो कृपया बताएं।
हम मरणोपरांत, किसी भी भाई की आलोचना नहीँ कर रहे हैं, अपितु जो और दुसरे लोग इस रस्ते का विचार रखते हैं, उन्हें रोकना चाहते हैं।
अपमान होने, मुकदमें होने, प्रताड़ित किए गए होने के कारण, क्या आत्महत्या करके हम अपने स्वाभिमान कि रक्षा करना चाहते हैं?
अपने परिवार कि परेशानी नहीं देखी जाती, आपके आत्महत्या करने से परिवार कि परेशानी खत्म हो जाएगी?
शुतुरमुर्ग भी रेत में सिर छिपाकर समझता है कि शिकारी से छिप गया है। क्या इस प्रकार आत्महत्या करना इसी परिधि में नहीं आता है?
“हम आत्महत्या कर लेंगे, घर वाले अपने समस्या अपने आप देख ही लेंगे”, यही सोचेंगे तभी आत्महत्या कर पाएँगे। क्या आपके बूढ़े माँता-पिता इसी लायक हैं? अगर आप खुद उनकी स्थिति को सोचने-समझने को तैयार नहीं हैं, तो आपको क्या अधिकार है किसी दुसरे व्यक्ति से, अपनी पत्नि से या ससुराल वालों से अपेक्षा करें कि, वो आपके बूढ़े माँता-पिता या परिवार के बारे में सोचें?
दूसरों ने, आपकी पत्नि ने या ससुराल वालों ने आपके माँता-पिता या परिवार को वो दुख या कष्ट दिए हैं, जिनका लड़ के निवारण किया जा सकता है, परन्तु जब आप आत्महत्या कर लेते है, तो आप खुद ही आपके माँता-पिता को, परिवार को, भाई-बहनों को, अपने ईष्ट मित्रों को अविस्मरणीय व बेहद असहनीय कष्ट देते हैं।
हमारे देश के कानून एकतरफा और अन्यायपूर्ण हैं, सही बात है। यह बात भी बिलकुल ठीक है कि अगर यह आत्महत्या, विपिन कि बजाय उसकी पत्नि ने की होती, तो विपिन और उसका पूरा परिवार अभी तक जेल में होता। लेकिन, क्योंकि आत्महत्या एक पति ने की है, अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। तो क्या कार्यवाही ना होने के विरोध में एक और आत्महत्या होनी चाहिए?
कानूनों में परिवर्तन की आवश्यकता है, लेकिन जब हर वर्ष 65,000 आत्महत्याएं होने पर भी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा, तो क्या किसी एक के आत्महत्या करने से पड़ेगा? अगर नहीं, तो क्यों हम यह स्वीकार नहीं करते कि इन सब समस्याओं का एक मात्र उपाय, केवल और केवल अपनी लड़ाई को जीतकर, विरोधियों को झूठा व गलत साबित कर ही किया जा सकता है।
केवल यही एक मात्र रास्ता है जिससे आपके बूढ़े माँता-पिता, आपका परिवार भी सन्तुष्ट होगा और जब हमारे आंकड़े भी बोलेंगे कि हम सब सही थे और हमारे विरोधी गलत बने हुए कानूनों का इस्तेमाल कर रहे थे, तब सरकार पर भी दबाव बनेगा और सरकार को नारिवादी शक्तियों को दरकिनार कर, कानूनों में परिवर्तन करना ही पड़ेगा।
परन्तु, यह सब जीवित रहकर ही किया जा सकता है।
“अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे, मर के भी चैन ना पाया, तो किधर जाएंगे???”
सोचो बन्धुओं सोचो, अगर जीवित ही ना रहे तो अपनी इस लड़ाई में जीत का जश्न कौन मनाएगा…