अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे, मर के भी चैन ना पाया, तो किधर जाएंगे???

“अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे, मर के भी चैन ना पाया, तो किधर जाएंगे???”

हमारे देश में करीब 65,000  विवाहित पुरुष हर वर्ष आत्महत्या कर लेते हैं, दिनांक 30/03/2016 को भी एक लड़की से बात हुई, उसने बताया कि उसके भाई ने ससुराल वालों से परेशान होकर फांसी लगाकर, दिनांक 26/03/2016 को आत्महत्या कर ली है। उसका भाई, शादी के बाद से ही अपनी पत्नि और ससुराल वालों के कारण बहुत ज्यादा परेशान रहता था।

उसके आत्महत्या करने कि ख़बर दिनांक 27/03/2016 को कोटा, राजस्थान में अखबारों में भी प्रकाशित हुई थी।

Dainik Navajyoti Kota City1459021328Page-14

मृतक विपिन का सुसाइड नोट दिनांक 27/03/2016 को, कोटा के अखबार “दैनिक नवज्योति” में, के पृष्ठ 14 पर प्रकाशित हो चुका है, लिहाज़ा, अब यह कोई गोपनीय दस्तावेज़ नहीं है। हम यह सुसाइड नोट यहाँ जिसलिए साझा कर रहे हैं, इसका एक बड़ा कारण हैं, हमें रोज ही पीड़ित लड़कों सम्पर्क करते हैं, जिनमे लड़के अक्सर भावावेश में कहते हैं कि:

  1. मै बहुत परेशान हूँ, जी करता है कि आत्महत्या कर लूँ
  2. कानूनों में सुधार होना चाहिए, चाहे सरकार का ध्यान खींचने को मुझे आत्महत्या ही क्यों न करनी पड़े
  3. मैं आत्महत्या कर लूँगा, मुझसे मेरे माँता-पिता व परिवार की परेशानी नहीं देखी जाती
  4. अगर मैं आत्महत्या कर लूँ तो आप लोग मुझे न्याय दिलाइएगा
  5. मैं सरकार से इच्छा मृत्यु की माग कर रहा हूँ
  6. ………
  7. ……….. इत्यादि इत्यादि

सुसाइड नोट में लिखा है:

मैं काफी समय से मानसिक दबाव में चल रहा था। मेरी हैसियत नहीं थी कि मै प्रकाश नारायण, गरीमा शर्मा, विमल शर्मा, और गौरव शर्मा को निवासी 2H25 महावीर नगर विस्तार योजना कोटा (राज०) को 15 लाख रूपये दे पाता। इन लोगों ने झूठ बोलकर शादी की हमें फंसाया और इन चारो ने मिलकर हमारे घर में साजिशें की। जब से शादी हुई तब से ये लोग मुझे और मेरे परिवार को केस करने की धमकियाँ दे रहे थे। क्या मेरा अपराध ये था कि मेरा बाप नही था या फिर मेरे और मेरे परिवार ने इन लोगों की छानबीन नहीं की।

मै एक मेडिकल की दूकान पर नौकरी करता था। इन लोगों से आतंकित होकर मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वर्तमान में इन लोगों ने खाने कमाने लायक भी नहीं छोड़ा। हमारे घर में इन लोगों की गुंडागर्दी और कोर्ट में भी इन लोगों की गुंडागर्दी।

इस गुंडागर्दी के दम पर केस भी अपने पक्ष में करवा लीये। और झूठे केसों में मुझे और मेरे परिवार को फंसा लिया। मेरे खुद की भी जान खतरे में थी और मेरा परिवार भी अब सुरक्षित नहीं है। उनकी ह्त्या भी हो सकती है।

आज दिनांक 24/3/016 को शाम को 4:30 लड़की का भाई गौरव शर्मा मेरे घर पर आया उसने मेरे भाई के साथ मारपीट भी की। और मेरी माँ को गाली-गलोच दी। इस घटना से मेरा परिवार काफी सदमे में है। और भयभीत भी है। ये लोग मुझसे पैसों कि माँग को लेकर मानसिक दबाव बना रहे थे। मेरी और मेरे परिवार की मुखबिरी हो रही थी। पता नहीं इन लोगों को क्या फायदा होने वाला था।

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विपिन शर्मा

कई लोगों को सुसाइड नोट में लिखे हालात बिलकुल अपने जैसे लगेंगे… लेकिन, गनीमत है कि इसे पढ़ने के लिए जीवित तो हैं…

प्रश्न यह नहीँ है कि मृतक विपिन ने सही किया, या गलत किया…

आपकी क्या राय है, इसका निर्णय आप करें। लेकिन हम यहाँ उन लोगों से पूछना चाहते हैं जो लोग आत्महत्या को हंसी खेल समझते हैं और मना करने के बावजूद बार बार कहते हैं कि:

  1. मै बहुत परेशान हूँ, जी करता है कि आत्महत्या कर लूँ
  2. कानूनों में सुधार होना चाहिए, चाहे सरकार का ध्यान खींचने को मुझे आत्महत्या ही क्यों न करनी पड़े
  3. मैं आत्महत्या कर लूँगा, मुझसे मेरे माँता-पिता व परिवार की परेशानी नहीं देखी जाती
  4. अगर मैं आत्महत्या कर लूँ तो आप लोग मुझे न्याय दिलाइएगा
  5. मैं सरकार से इच्छा मृत्यु की माग कर रहा हूँ
  6. ……
  7. ……. इत्यादि इत्यादि

हमारे देश में, इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए और यही सब सोचते हुए, हर वर्ष करीब 65,000 विवाहित पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं। क्या किसी को भी जानकारी है, कि जिन लोगों ने आत्महत्या की है, उनकी समस्या का समाधान हो गया? कोई भी उदाहरण हो तो कृपया बताएं।

हम मरणोपरांत, किसी भी भाई की आलोचना नहीँ कर रहे हैं, अपितु जो और दुसरे लोग इस रस्ते का विचार रखते हैं, उन्हें रोकना चाहते हैं।

अपमान होने, मुकदमें होने, प्रताड़ित किए गए होने के कारण, क्या आत्महत्या करके हम अपने स्वाभिमान कि रक्षा करना चाहते हैं?

अपने परिवार कि परेशानी नहीं देखी जाती, आपके आत्महत्या करने से परिवार कि परेशानी खत्म हो जाएगी?

शुतुरमुर्ग भी रेत में सिर छिपाकर समझता है कि शिकारी से छिप गया है। क्या इस प्रकार आत्महत्या करना इसी परिधि में नहीं आता है?

“हम आत्महत्या कर लेंगे, घर वाले अपने समस्या अपने आप देख ही लेंगे”, यही सोचेंगे तभी आत्महत्या कर पाएँगे। क्या आपके बूढ़े माँता-पिता इसी लायक हैं? अगर आप खुद उनकी स्थिति को सोचने-समझने को तैयार नहीं हैं, तो आपको क्या अधिकार है किसी दुसरे व्यक्ति से, अपनी पत्नि से या ससुराल वालों से अपेक्षा करें कि, वो आपके बूढ़े माँता-पिता या परिवार के बारे में सोचें?

दूसरों ने, आपकी पत्नि ने या ससुराल वालों ने आपके माँता-पिता या परिवार को वो दुख या कष्ट दिए हैं, जिनका लड़ के निवारण किया जा सकता है, परन्तु जब आप आत्महत्या कर लेते है, तो आप खुद ही आपके माँता-पिता को, परिवार को, भाई-बहनों को, अपने ईष्ट मित्रों को अविस्मरणीय व बेहद असहनीय कष्ट देते हैं।

हमारे देश के कानून एकतरफा और अन्यायपूर्ण हैं, सही बात है। यह बात भी बिलकुल ठीक है कि अगर यह आत्महत्या, विपिन कि बजाय उसकी पत्नि ने की होती, तो विपिन और उसका पूरा परिवार अभी तक जेल में होता। लेकिन, क्योंकि आत्महत्या एक पति ने की है, अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। तो क्या कार्यवाही ना होने के विरोध में एक और आत्महत्या होनी चाहिए?

कानूनों में परिवर्तन की आवश्यकता है, लेकिन जब हर वर्ष 65,000 आत्महत्याएं होने पर भी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा, तो क्या किसी एक के आत्महत्या करने से पड़ेगा? अगर नहीं, तो क्यों हम यह स्वीकार नहीं करते कि इन सब समस्याओं का एक मात्र उपाय, केवल और केवल अपनी लड़ाई को जीतकर, विरोधियों को झूठा व गलत साबित कर ही किया जा सकता है।

केवल यही एक मात्र रास्ता है जिससे आपके बूढ़े माँता-पिता, आपका परिवार भी सन्तुष्ट होगा और जब हमारे आंकड़े भी बोलेंगे कि हम सब सही थे और हमारे विरोधी गलत बने हुए कानूनों का इस्तेमाल कर रहे थे, तब सरकार पर भी दबाव बनेगा और सरकार को नारिवादी शक्तियों को दरकिनार कर, कानूनों में परिवर्तन करना ही पड़ेगा।

परन्तु, यह सब जीवित रहकर ही किया जा सकता है।

“अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे, मर के भी चैन ना पाया, तो किधर जाएंगे???”

सोचो बन्धुओं सोचो, अगर जीवित ही ना रहे तो अपनी इस लड़ाई में जीत का जश्न कौन मनाएगा…

आप इस लड़के को बचाना चाहेंगे, या इसकी आत्महत्या के बाद एक और कैंडल मार्च निकालना चाहेंगे?

आज हमारा देश एक ऐसी स्थिति से गुजर रहा है जहां एक तरफ तो महिला को, पत्नि, मित्र, प्रेमिका, लिव-इन पार्टनर, यहाँ तक कि एक वैश्या के रूप में भी सशक्ति किया जा रहा है और दूसरी तरफ एक माँ, बहन, भाभी, ताई, चाची, बूआ आदि के रूप में उन्हें महिला ही नहीं माना जाता।

जब यहाँ छद्म महिला सशक्तिकरण इस कदर सर चढ़ कर बोल रहा है कि नारिवादी शक्तियों के दबाव में सरकार बिना कुछ सोचे समझे कानून बनाने पर आमादा है, तो यहाँ एक पुरुष का यह उम्मीद करना कि उसे भी न्याय मिल सकता है, बेमानी है, एक धोखा है।

एक लड़के ने एक लड़की से इस कदर प्यार किया कि अपना सबकुछ लुटा दिया, परन्तु उस लड़की ने इस लड़के का इस कदर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक शोषण कर धोखा दिया कि उसे लगने लगा कि अब आत्महत्या करने के अलावा कोई रास्ता शेष नहीं है।      

आत्महत्या को आमादा इस लड़के को जब समझाया गया तो इसने न्याय पाने का मार्ग पूंछ, क्योंकि वो जानता है कि उसके सच के लिए भी कोई कानून नहीं है ओर जससे वह प्रेम करता है, उसके झूठ को भी समर्थन देने के लिए एक पूरा मंत्रालय है, आयोग है और हमारी नारिवादी न्यायपालिका है।

उस लड़के की हकीकत, उसी के शब्दों में:

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हम उस व्यक्ति को धन्यवाद देना चाहते हें जिसने इस लड़के को, भारत की पहली व एक मात्र पुरुष हेल्पलाइन SIF-One पर, यानी 8882-498-498 पर कॉल कर सहायता मांगने के लिए प्रेरित किया।

यह लड़का अगर सम्पर्क में न आया होता, तो शायद यह हकीकत इस लड़के के आत्महत्या करने के बाद सुसाइड नोट में ही पढ़ने को मिलती।

अब आप निर्णय करें कि आप इस लड़के को बचाना चाहेंगे और न्याय दिलाना चाहेंगे, या इसके आत्महत्या कर लेने के बाद एक और कैंडल मार्च निकालना चाहेंगे?

हमारा गांधारी समाज और वैवाहिक बलात्कार

भगवान राम ने जब सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ा और प्रभू परशुराम क्रोधित हुए, तब लक्षमण जी ने कहा “मूंदें आँख कत्हू कछु नाहि”, अर्थात, आँख मूंद ले, कहीं कुछ नहीं हुआ। गांधारी ने भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी थी, जो कि धृतराष्ट्र के अन्याय को ना देखने का भी सूचक है। ये दोनों घटनाएं मनुष्य के व्यवहार के विषय में बताती हैं कि आँखे मूंद कर सोचना की कुछ नहीं है, मनुष्य के लिये आम बात है। इससे प्रकृति भी अछूती नहीं है। शुतुरमुर्ग भी रेत में सिर छिपाकर समझता है कि शिकारी से छिप गया है।

धृतराष्ट्र के पास तो महाभारत का आँखों देखा हाल बताने के लिये तो विश्वसनीय संजय थे, परन्तु आज के समाज में हम लोग जानबूझ कर धृतराष्ट्र व गांधारी बने हुए हैं, जो कि कुछ संजय रूपी पक्षपातपूर्ण लोगों की बात पर विश्वास कर लेते हैं।

“भारत में नारीवाद” को संजय के पक्षपातपूर्ण व नकारात्मक रूप की उपाधि देना गलत न होगा, जिसकी अनर्गल बाते, निरंतर सुनकर दुर्भाग्य से हमारा समाज भी उनके निम्न झूठों पर विश्वास करने लगा है।

  • झूठ 1 – भारत मे वैवाहिक बलात्कार के कानून का प्रावधान नहीं है।
  • झूठ 2 – वैवाहिक बलात्कार – बीवियां पीड़ित हैं।

यह मान्यताएं पूर्ण रूप से नारीवादी वित्त पोषित मानसिकता से निकली हुई सोच हैं जो कि परिवार एवं पुरुष विरोधी है। हम यहाँ कुछ ऐसे महत्वपूर्ण पथ्यों को सामने लाना चाहते हैं जिनको छुपाते हुए महिलावादी, भारतीय कानूनों की आजमाइश कर रहे हैं।

पहला झूठ कि भारत में, वैवाहिक जीवन में बलात्कार का कानून नहीं है। इस विषय में 4 बहुत ही महत्वपूर्ण कानूनों/प्रावधानों के प्रासंगिक अंश के साथ सूची निम्न प्रकार है:

प्रावधान 1:

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अनुसार:

“धारा 3) घरेलू हिंसा की परिभाषा: इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रत्यर्थी का कोई कार्य, लोप या किसी कार्य का करना या आचरण, घरेलू हिंसा गठित करेगा यदि वह-

  • व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की अपहानि करता है, या उसे कोई क्षति पहुंचाता है या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की पृवित्ति है और जिसके अंतर्गत शारीरिक दुरुपयोग, यौन दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग कारित करना भी है; या
  • किसी दहेज ……………. ; या
  • खंड (क) या खंड (ख) में ………………………… ; या
  • व्यथित व्यक्ति को ……………………….. ; या

स्पष्टीकरण 1- इस धारा के प्रयोजनों के लिए—

  • “शारीरिक दुरुपयोग” से ऐसा कोई कार्य ……………………………
  • “यौन दुरुपयोग” से यौन प्रकृति का कोई आचरण अभिप्रेत है, जो महिला की गरिमा का दुरुपयोग, अपमान, तिरस्कार करता है या उसका अन्यथा अतिक्र्मण करता है;
  • ……………

 “धारा 18) संरक्षण आदेश: मजिस्ट्रेट, व्यथित व्यक्ति और प्रत्यर्थी को सुनवाई का एक अवसर दिए जाने के पश्चात और उसका प्रथमद्रिष्टया समाधान होने पर कि घरेलू हिंसा हुई है या होने वाली है, व्यथित व्यक्ति के पक्ष में एक संरक्षण आदेश पारित कर सकेगा पथा प्रत्यर्थी को निम्नलिखित से प्रतिषिद्ध कर सकेगा,-

  • घरेलू हिंसा के किसी कार्य को करना;
  • घरेलू हिंसा के कार्यों के कारित करने में सहायता या देष्प्रेरण करना;

“धारा 31) प्रत्थर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के उल्लंघन के लिए शास्ति-

  • प्रत्थर्थी द्वारा संरक्षण आदेश या किसी अंतरिम संरक्षण आदेश का भंग, इस अधिनियम के अधीन एक अपराध होगा और वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो बीस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा।
  • उपधारा (1) के ………………………………..
  • उपधारा (1) के अधीन आरोपों को विरचित करते समय, मजिस्ट्रेट, यथास्थिति, भारतीय दंड़ संहिता की धारा 498क, या उस संहिता के किसी अन्य उपबंध, या दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के अधीन आरोपों को भी विरचित कर सकेगा, यदि तथ्यों से यह प्रकट होता है कि उन उपबंधों के अधीन कोई अपराध हुआ है।

इसका मतलब है कि भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम के अनुसार:

  • “कोई” भी यौन आचरण दंडनीय है। जी हाँ, “कोई” भी।
  • संरक्षण आदेश प्रतिवादी को यौन शोषण सहित, घरेलू हिंसा के किसी भी कृत्य को करने से रोकता है। इसमें घरेलू हिंसा करने में सहायता करने वाले या उकसाने वाले भी शामिल होते है। मतलब कि ये सभी प्रतिवादियों पर लागू होता है।
  • संरक्षण आदेश के उल्लंघन का अर्थ है एक साल की जेल और धारा 498क के तहत मुकदमा।
  • “बलात्कार”, अपनी सभी ज्ञात व अज्ञात परिभाषाओं के अनुसार “यौन शोषण” की क्ष्रेणी में आता है।
  • एक और तथ्य, कि भारतीय कानून के अनुसार केवल एक महिला ही घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 में एक पीड़ित के रूप में परिभाषित है, पुरुष नहीं।

प्रावधान 2:

“धारा 377) प्रकृति विरुद्ध अपराध: जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीवजन्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रियभोग करेगा वह [आजीवन कारावास] से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण- इस धारा में वर्णित अपराध के लिए आवश्यक इन्द्रियभोग, गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है

इसका मतलब यह है कि भारतीय दंड सहिंता की धारा 377 के अनुसार:

  • कोई भी “प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध” दंडनीय है। जी हाँ, कोई भी।
  • 10 साल का कारावास और आर्थिक दंड़ भी। और
  • गैर जमानती।
  • क्योंकि यह इन्द्रियभोग की बात करता है इसलिए केवल पुरुष ही अपराधी हो सकता है।
  • दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 41A के अस्तित्व में आने के बाद से, पूरे भारत में वैवाहिक मुद्दे सम्बंधित प्राथमिकी के नवीनतम स्वरूपों को देखें, भारतीय दंड संहिता की धारा 377, गिरफ्तारी कराने के लिये विशेष रूप उपयोग की जाती है।

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प्रावधान 3:

“धारा 498A) किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसका उत्पीड़न करना: जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री का उत्पीड़न करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “उत्पीड़न” निम्नलिखित अभिप्रेत है:-

  • जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे स्त्री को आत्महत्या करने के लिए या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) के प्रति गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिए उसे प्रेरित करने की सम्भावना है; या
  • किसी स्त्री को तंग करना, जहां उसे या उससे सम्बन्धित किसी व्यक्ति को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिए प्रपीडित करने को द्रिष्टि से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसे मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है।

इसका मतलब यह है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अनुसार:

  • “उत्पीड़न” किसी भी प्रकार का हो सकता है और इसमें यौन उत्पीड़न भी शामिल है।
  • यह एक दंडात्मक प्रावधान है।
  • एक और गलतफहमी की 498A दहेज उत्पीड़न के बारे में है।

प्रावधान 4:

“धारा 376A) पृथक्करण के दौरान किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग: जो कोई अपनी पत्नी के साथ, जो पृथक्करण की किसी डिक्री के अधीन या किसी प्रथा अथवा रूढ़ि के अधीन, उससे पृथक रह रही है, उसकी सम्मति के बिना उसके साथ मैथुन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

इसका मतलब यह है कि भारतीय दंड सहिंता की धारा 376A के अनुसार:

  • एक पति द्वारा ‘पत्नी’ का बलात्कार भारतीय दंड सहिंता की धारा 376 का हिस्सा है।
  • “पृथक्करण” परिभाषित न होने के कारण यह धारा विभिन्न राज्यों की प्राथमिकी स्वरूपों में आमतौर पर इस्तेमाल की जा रही है।

एक पति का बलात्कार अगर पत्नी द्वारा किया जाता है, तो उसके लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। मौजूदा कानून मे एक पति की गरिमा और जीवन का कोई मूल्य नहीं है।

विवाह के बाद, पति या पत्नी को, दाम्पत्य अधिकारों के लिए कानूनी अधिकार हैं। कानून द्वारा दिए गए दाम्पत्य अधिकार, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के अनुसार परिभाषित भी हैं।

एक प्रेमी, एक पति, को आम सहमनत के साथ बने रिश्ते के बाद, बलात्कारी करार करना धोखा है खास तौर पर जब वो रिश्ता शादी के रूप में एक पारिवारिक और कानूनी रिश्ता हो।

दूसरा झूठ: वैवाहिक बलात्कार – पत्नियां पीड़ित हैं।

महिलाओं के विषय में महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी की गयी एक रिपोर्ट का अवलोकन करें (दुर्भाग्यवश, सरकार ने इस विषय पर कोई भी सर्वेक्षण करना जरूरी नहीं समझा)

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2007 में “Study on Child Abuse : India 2007” नामक एक रिपोर्ट बच्चों के उत्पीड़न के विषय में जारी की, जिसके पृष्ठ 74 पर लिखे तथ्य विचारणीय हैं:

Study on Child Abuse - India 2007-74-page-001

इसमें साफ लिखा है कि, “Among them 52.94% were boys and 47.06% girls”, इसका मतलब है कि बच्चों के साथ यौन शोषण के हर 100 मामलों में पीड़ित, 53 लड़के हैं और 47 लड़कियां हैं।

पृष्ठ 75 पर राज्यवार वितरण भी दिया हुआ है:

Study on Child Abuse - India 2007-75-page-001

सर्वेक्षण में जिन 13 प्रमुख राज्यों को शामिल किया गया उनमें से 9 राज्यों में 50% से अधिक यौन शोषण के पीड़ित लड़के हैं। दुर्भाग्यवश लड़कों के यौन शोषण के मामले में अधिकतम, 65.64% दिल्ली का है और लड़कियों के मामले में अधिकतम, 63.41% गुजरात का है। इसका मतलब है कि अधिकतम प्रतिशतों में भी, लड़कों का यौन शोषण, लड़कियों के यौन शोषण से 2% अधिक है, जबकी औसत के अनुसार, लड़कियों के यौन शोषण की तुलना में लड़कों का यौन शोषण 6% अधिक है।

लिहाज़ा, हमारी सरकार के महिलावादी धड़े के अनुसार भी, हमारे देश में लड़कों का ही यौन शोषण अधिक हो रहा है।

हालांकि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के दावे की सच्चाई पर शक कर सकते हैं क्योंकि मंत्रालय ने जन सूचना का अधिकार के माध्यम से यह कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि “Protection of Men is not Ministry’s mandate”, अर्थात, पुरुषों का संरक्षण मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं है। तो यह पूर्ण रूप से माना जा सकता है कि आंकड़े एकत्र करने का तरीका और उसका प्रदर्शन महिलाओं के प्रति एकतरफा होना तय है। और इसलिए, यह आंकड़े महिलाओं के समर्थन में हर संभव तरीके से दर्शाए गए होंगे।

फिर भी, हम यह मान रहे हैं कि यह आंकड़े पूर्णतया सही है और यह हमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण व जादूई तथ्य तक लाते हैं:

भारतीय समाज और कानून के अनुसार, लड़के, जो 53% यौन शोषण के पीड़ित हैं, एकाएक अठारहवाँ जन्मदिन मनाते ही, 0% पीड़ितों में तबदील हो जाते हैं।

क्योंकि, भारतीय समाज और कानून यह स्वीकार ही नहीं करता कि पुरुषों या पति के साथ भी बलात्कार हो सकता है।

विभिन्न सर्वेक्षणों/आंकड़ों में, यह हमेशा पाया गया है कि पुरुष भी घरेलू हिंसा, पति-जलाने जैसी घटनाओं में बराबर के पीड़ित हैं और उपरोक्त सर्वेक्षण के अनुसार तो बलात्कार और यौन उत्पीड़न में भी बराबर के पीड़ित हैं, तो हमारा समाज व कानून यह क्यों समझता है कि पति/पुरुष के साथ बलात्कार किया ही नहीं जा सकता? भले ही एक अकेला ही इस तरह का मामला हो, क्या आपको यह नहीं लगता कि उस पुरुष के पास उसकी रक्षा के लिए एक भी कानून न होना असंवैधानिक है?

तो, दोनों झूठों की वास्तविकता स्पष्ट होने के बाद, आशा है कि आप एक तथ्य पर सहमत होंगे:

भारतीय पतियों को पीड़ित के तौर पर एक वैवाहिक बलात्कार के कानून की जरूरत है और ऐसे ही एक कानून की जरूरत भारतीय पुरुषों को बलात्कार से उन्हें बचाने के लिए है।